9-2-11

का पता बदल गया है। यहाँ पर जारी:

http://devanaagarii.net/hi/alok/blog/

अलबत्ता, पुराने लेख यहीं मिलेंगे:

रविवार, अगस्त 31, 2003 14:58
 
अभिषेक कुमार, भारतीय प्राविधिक संस्थान, कानपुर के विद्यार्थी का जालस्थल मिला। वैसे उसमें अभी ज़्यादा मसला तो नहीं है, पर मुझे मज़ा आया उनके वैपत्रिक पते को देख के, कभी ऍट आई आई टी के डॉट एसी डॉट इन। कभी कभी, मेरे दिल में, ख़याल आता है।
शनिवार, अगस्त 30, 2003 09:13
 
लगता है सुबह उठ के व्यायाम, ध्यान आदि करने के ख़्वाब को भूल ही जाना चाहिए।
इतना समय हो गया है, एक दिन भी ०६०० बजे नहीं उठ पाया। धिक्कार है! गब्बर की इज़्ज़त मिट्टी में मिलती जा रही है।
कई दिनों से सोच रहा हूँ कि देवनागरी के संयुक्ताक्षरों की कुञ्जी बनाई जाए। इसकी मदद से हम मुद्रलिपियों को जाँच सकते हैं और यह अन्य लोगों के लिए भी लाभदायक होगी। यानी कि हरेक संयुक्ताक्षर के अलग अलग सम्भव रूप। क्या ख़याल है और इसे कैसे किया जा सकता है?
शुक्रवार, अगस्त 29, 2003 22:45
 
आजकल देख रहा हूँ कि इङ्ग्लैण्ड में काफ़ी हिन्दी के स्थल बन रहे हैं, जैसे कि ग्रीनविच मॅरीटाइम म्यूज़ियम का यह स्थल। या डार्विन सङ्ग्रहालय का स्थल। इङ्ग्लैण्ड ने डार्विन जैसे लोग पैदा करना बन्द क्यों कर दिया है?
गुरुवार, अगस्त 28, 2003 22:47
 
ब्लॉग की शकल बदल दी है, अक्षर भी बड़े कर दिए हैं। अब ठीक लग रहा है। बस पुरालेख वाले पन्ने बदलने हैं। चलो अब नौ दो ग्यारह होते हैं।
बुधवार, अगस्त 27, 2003 08:05
 
आज का अलार्म था ६ बजे का ही, और उठा ०७३० पर। कुछ तो सुधार है। कल देखते हैं क्या होता है। सोच रहा था कि विकीपीडिया वाले निष्पक्ष और पूर्वाग्रहरहित लेख कैसे पैदा कर पाएँगे, जब सभी लेख स्वयंसेवियों द्वारा ही लिखे गए हैं?
मंगलवार, अगस्त 26, 2003 15:26
 
ऑफ़िस से एक फ़ोन मिला है, नोकिया ३३१५। अब उसे हमेशा गले में लटका के घूमना पड़ेगा। लेकिन मज़े की बात यह है कि इसका सूचना पत्र यानी मॅनुअल और फ़ोन के सन्देश हिन्दी में भी हैं! चलो इस बहाने मुझे हिन्दी वाला फ़ोन तो मिल गया। इस बीच चीनियों ने हिन्दी चीनी भाई भाई शुरू कर दिया है।
सोमवार, अगस्त 25, 2003 08:07
 
नेपाल के मदन पुरस्कार पुस्तकालय(ऐसा नाम क्यों है? पुरस्कृत पुस्तकालय है या बन्दे का नाम मदन पुरस्कार है?) ने देवनागरी की दो
दो मुद्रलिपियाँ तैयार की हैं। देखने लायक हैं। दिखने में सुरेख से बेहतर तो नहीं हैं पर संयुक्ताक्षर इसमें बहुत सारे हैं। मुझे ङ्ग्र का संयुक्ताक्षर नहीं मिला, जो कि सुरेख में है। लेकिन सुरेख में "अङ्ग्रेज़ी" लिखने पर ङ्ग्रे और ज़ी के बीच खाली जगह आ जाती है, ऐसा इसमें नहीं है। यह मिला कैसे? मैंने गूगल पर भगवान को खोजा था
रविवार, अगस्त 24, 2003 13:06
 
जाल चिट्ठा, यानी वॅब्लॉग? शायद यह अनुवाद कैसा है? पता नहीं। वैसे मुझे तो सिर्फ़ चिट्ठा ही जम रहा है। तो इस चिट्ठे को आगे बढ़ाएँ। सी प्लस प्लस सवाल जवाब पर काम तो शुरू किया है, लेकिन मैं समझता हूँ कि पहले लिनक्स परिचय को निपटा ही देना चाहिए, उसके बाद किसी और चीज़ पर बढ़ें।
शनिवार, अगस्त 23, 2003 02:36
 
क्या करें नींद ही नहीं आ रही इसलिए लिख लेते हैं। कई गतिविधियों को कम करना पड़ेगा नहीं तो घर में हँगामा मच जाएगा। आज मैंने हिन्दी प्रदर्शन सहायता वाले पन्ने की ऍच टी ऍम ऍल की पुष्टि कर दी। तरीक़ा ढूँढ रहा था लिनक्स में रहते हुए विण्डोज़ की फ़ाइलें पढ़ने का लेकिन कुछ जुगाड़ अभी तक बन नहीं पाया। नॅटहोय जी से पत्र आया, अच्छा लगा। एक क्षेत्रीयकरण सम्बन्धी स्थल मिला है, और शुक्र है कि इसमें हिन्दी, मराठी आदि के विभाग भी हैं। और सहारा वालों ने एक समाचारों का यूनिकोडित स्थल बनाया है। बीबीसी के बाद यह पहला है।
ऐसा लगता है कि सब कुछ उस गति से नहीं हो रहा जिससे होना चाहिए लेकिन बूँद बूँद से ही घड़ा भरता है न।
बाकी फिर जब इस पन्ने की किस्मत खुलेगी, तब, फिलहाल होते हैं नौ दो ग्यारह।
बुधवार, अगस्त 06, 2003 07:29
 
दो दिल मिल रहे हैं, मगर चुपके चुपके।
मुझे लग रहा है कि मेरे शौकिया कामों और असली कामों के बीच का रास्ता मिल गया है। वह है सी प्लस प्लस। इसकी पढ़ाई शुरू कर रहा हूँ और उम्मीद है कि यह हिन्दी वाले कामों में भी काम आएगी।
मंगलवार, अगस्त 05, 2003 07:14
 
क्यों चलती है पवन, क्यों ...
अपना लिनक्स संस्थापन ठीक ठाक चल रहा है, अब तो मैं यह जानना चाहता हूँ कि ऍस टी ऍल की मदद से या सी लाइब्रेरी की मदद से यू टी ऍफ़ ८ अक्षरों को कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है। शायद wchar नाम की कोई चीज़ काम में आती है। और यूनिकोड में पचासों चीज़ें हैं, यू सी ऍस २, यू टी ऍफ़ ७ आदि, इन सब में क्या कहानी है पता करना है।

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