9-2-11

का पता बदल गया है। यहाँ पर जारी:

http://devanaagarii.net/hi/alok/blog/

अलबत्ता, पुराने लेख यहीं मिलेंगे:

शुक्रवार, जुलाई 25, 2003 18:23
 
अच्छा तो अब पाँच मिनट तक जाल के तार टूटे हुए हैं, तो कुछ लिख लेते हैं।
अभी कल ही एक देवनागरी मुद्रलिपि मिली, जो कि प्रबुद्ध कालिया द्वारा बनाई गई है। बढ़िया है। गूगल जिन्दाबाद। सोच रहा हूँ कि बिना गूगल क्या ज़िन्दगी होगी। पर तब कुछ और होता, जिसके बिना ज़िन्दगी नहीं होती, इसलिए यह प्रश्न अवैध है।
देखो, ये जो नदी है, मिलने चली है, सागर ही को। दिल चाहता है का गाना। वैसे लगान फ़िल्म का जालस्थल देखा था। पूरा अङ्ग्रेज़ी में। अच्छा था।
सोचा था कि देवनागरी की चर्चा करने के लिए एक समूह होना चाहिए, जिसमें जाल पर देवनागरी के बारे में बातचीत हो सके, और यह बातचीत देवनागरी में हो। तरह तरह के लोगों से मिलने का मौका मिलेगा। पर इस स्थल का मकसद क्या होगा? मेरे हिसाब से इसका लक्ष्य होना चाहिए यूनीकोडित हिन्दी को बढ़ावा देना। या यूँ कहें कि मान्यता प्राप्त कूटबन्धनों को बढ़ावा देना। फ़िलहाल तो मान्यता प्राप्त केवल यूनीकोड ही है। धिक्कार है।
मगर जाल पर तो यूनीकोड ही चलेगा। जालराज लोग भी थक जाते हैं अलग अलग कूटबन्धन सँभालते सँभालते। तो इसका नाम क्या होना चाहिए, यानी इस डाकसूची का।
एक नाम तो ज़ाहिर ही है, वह है देवनागरी। उसके अलावा? इन्द्रजाल, अन्तर्जाल, क्या?
आपके सुझाव आमन्त्रित हैं।
गुरुवार, जुलाई 24, 2003 19:56
 
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, साँझ की दुल्हन ... गाना बज रहा है, और मैं लिख रहा हूँ ब्लॉग। यार ब्लॉग की हिन्दी क्या होगी? अभी तक नहीं सोच पाया। चलो दूसरी तरह से सोचते हैं, मैं अपनी दादी को कैसे समझाऊँगा कि यह क्या है? मशीनी डायरी?
शायद। वैसे दोनो शब्द अङ्ग्रेज़ी के हैं।
लगता है मोज़िला में --enable-ctl जल्दी ही विण्डोज़ के लिए भी ठीक हो जाएगा, देखिए इस त्रुटि को। इसके बाद अग़र कोई दिक्कत होगी तो वह होगी सन की देवनागरी मुद्रलिपि की वजह से। उसमें भी कुछ त्रुटियाँ हैं। जैसे कि क्क के बदले खाली जगह ही आती है। पर कम से कम इस्तेमाल करने लायक तो हो जाएगा।
क्या वह दिन आएगा जब एक भी अङ्ग्रेज़ी का अक्षर न जानने वाला इंसान भी बेधड़क सङ्गणक यानी कम्प्यूटर का इस्तेमाल कर सके? फ़िलहाल तो वह समय बहुत दूर है।
नौ दो ग्यारह होने के पहले आएगा क्या? पता नहीं।
मुझे लगता है कि जिस दिन हमने कुञ्जीपटल यानी कीबोर्ड से निजात पा ली वह दिन बहुत बड़ा दिन होगा। या तो हाथ से लिखो, या बोल के बताओ कि तुम क्या काम करवाना चाहते हो। आज एक दुकान पर पुराने किस्म का टाइपराइटर देखा। बाप रे, क्या मेहनत लगती थी। खट खट, खटा खट। ऐसा लगा कि यह कौन से युग का यन्त्र है?
पता चला कि विकिपीडिया पर भी हिन्दी में काम शुरू हो गया है। लगता है अब समय आ गया है कि एक डाक सूची बनाई जाए जिसपर हिन्दी में जाल पर चर्चा हो। क्योंकि सब लोगों को बार बार वही दिक्कत आती है। वैसे तो लिनक्स के लिए एक डाक सूची है, लेकिन हर कोई तो लिनक्स पर काम नहीं करता। और दूसरी डाक सुचियाँ हिन्दी सीखने के लिए हैं या साहित्यिक हैं। इतना ही नहीं इनमें अङ्ग्रेज़ी में लिखी डाक ही ज़्यादा है। तो क्या ख़याल है? डीमोज़ का अपना मञ्च भी है, लेकिन सम्पादकों के लिए ही। यूज़्नॅट पर लेख लिखना, भी एक विकल्प हो सकता है, लेकिन कई लोग अपनी डाक में पत्र पाना पसन्द करते हैं। इसलिए लग रहा है कि एक डाक सूची का ज़रूरत है जो कि अन्तर्जाल पर काम की चर्चा करने में सहायक हो।
चलो भइया अब उठाते हैं बोरिया बिस्तर, अगले तीन दिन बहुत ज़रूरी काम करने हैं इसलिए मैं सङ्गणक से दूर ही रहूँगा।


रविवार, जुलाई 20, 2003 17:27
 
यार टिप्पणियाँ तो आई ही नहीं। अब देखते हैं कि क्या हुआ है। इस बीच मुझे तमिल में एक ब्लॉग मिला। बढ़िया है।
 
हूँ, बड़े दिनो बाद। ख़बर यह है कि --enable-ctl के साथ मोज़िला चल गया। और यह दिखता भी बढ़िया है। आप भी चला के देखें। वैसे मैं इसे विण्डोज़ पर चला के नहीं देख पाया हूँ अभी तक, अग़र चल गया तो बढ़िया हो जाएगा क्योंकि ज़्यादातर लोग तो विण्डोज़ 98 का इस्तेमाल ही करते हैं।
बुधवार, जुलाई 09, 2003 18:03
 
वीवडायल का मसला तो सुलझ गया अब, यानी केपीपीपी की मदद से वही काम हो रहा है जो मैं wvdial से करता था, तो ठीक है, चलेगा, कोई चक्कर नहीं। अब आगे बढ़ना है --enable-ctl के साथ।
और मैंने देवनागरी लिपि के बारे में लिखना शुरू किया है, यदि कोई त्रुटियाँ हौ तो बताएँ।
सब कुछ हिन्दी में करने में बड़ा मज़ा आता है, विपत्र, समाचार पाठक, और ब्लॉग। एक मोहन सेवक जी के बारे में पता चला है, जो कि हिन्दी की हिमायत अङ्ग्रेज़ी में लेख लिख कर करते हैं।
आजकल बङ्गलोर में मौसम बहुत बढ़िया है, लेकिन रोज रोज मौसम अच्छा ही होता है इसलिए उसका आभास ही नहीं होता।
तकनीकी काम करते वक़्त ऐसा लगने लगा है कि क्या मैं सही दिशा में जा रहा हूँ? मेरा रेस्युमे कहता है कि मै प्रॉजॅक्ट लीडर हूँ। यानी उसके हिसाब से मुझे और तरह के काम करने चाहिए। मैं जो काम पसन्द करता हूँ वह है प्रोग्रामिङ्ग का। लेकिन प्रोग्रामिङंग अब कहाँ हो पाती है इतनी। बल्कि जो कुछ मुझे पहले आता था वह भी मैं भूलता जा रहा हूँ। क्या निजात है इस चक्रव्यूह से, पता नहीं। खाली समय में मैं जो कर रहा हूँ वह बिल्कुल अलग है, हिन्दी से सम्बन्धित। उसीमें सबसे ज़्यादा मज़ा भी आता है। तो उपाय यह है कि फटाफट इतने पैसे कमा लो कि दिन भर हिन्दी वाला काम कर सको। या और क्या? पता नहीं।
लहरों के झोंको के साथ बहता ही जा रहा हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि अग़र कुछ करने की ठानी और वह नहीं हुआ तो क्या होगा। है न रद्दीपन की निशानी? लेकिन कुछ तो मन बनाना ही पड़ेगा। पर इस शनिवार को मैं --enable-ctl कर के ही छोड़ूँगा। पता करना पड़ेगा कि इसके लिए कितना समय लगेगा, डायलप के साथ।
कहता है दिल, कि आराम करना है, लेकिन दुनिया कहती है कि कुछ करो तभी नौ दो ग्यारह होओ।
शनिवार, जुलाई 05, 2003 12:30
 
अरे वाह, ब्ल़ॉग्स्पॉट पर अब हिन्दी में तिथि भी आने लगी है। बढ़िया है।
छुट्टी से लौटा, अब हज़ार काम हैं, घर पर और बाहर भी।
अभी तक मोज़िला पर --enable-ctl की खोजबीन नहीं हो पाई है।
आई ऍस पी ने फ़ोन नम्बर क्या बदला, लिनक्स में वीवड़ायल(wvdial) चलना ही बन्द हो गया है। तीन बार प्रवेश शब्द पूछता है और उसके बाद टपक जाता है। इसलिए यह विण्डोज़ से लिख रहा हूँ। हर समय कोई न कोई समस्या लगी ही रहती है।
एक और चीज़ है कि इसका फॉँण्ट बड़ा करना है।
इण्डिक कम्प्यूटिङ्ग कुछ लिखने का वादा किया था, उसे भी पूरा करना है। वादे, वादे, वादे, और उम्मीदें। बस इन्हीं के बीच में फँसा रह जाता है इंसान। और फिर हो जाता है नौ दो ग्यारह।

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